डॉलर के सामने रुपये की मजबूती: क्या इसे बनाए रखना आसान होगा?

हाल के दिनों में भारतीय रुपये की अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट की खबरें सुर्खियों में रही हैं। रुपये का डॉलर के मुकाबले 85 के पार जाना कई लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया। लेकिन कहानी का यह सिर्फ एक पहलू है। रुपये की असली ताकत को समझने के लिए हमें इसके व्यापक संदर्भ को देखना होगा, जिसमें न केवल डॉलर बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के साथ इसकी तुलना शामिल है।

डॉलर के मुकाबले रुपये का प्रदर्शन: हार में भी जीत

शाहरुख खान की फिल्म बाजीगर का एक मशहूर डायलॉग है, “हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।” कुछ ऐसा ही भारतीय रुपये के साथ हो रहा है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर होने के बावजूद, भारतीय रुपये का वैश्विक मुद्रा बाजार में प्रभाव बढ़ा है। नवंबर में रुपये का रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) सूचकांक रिकॉर्ड 108.14 पर पहुंचा, जो दर्शाता है कि रुपये की ताकत केवल डॉलर के मुकाबले गिरावट से नहीं आंकी जा सकती।

रुपये की मजबूती का असली मापदंड: REER क्या है?

रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) भारतीय रुपये की ताकत को केवल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नहीं बल्कि 40 वैश्विक मुद्राओं की एक बास्केट के संदर्भ में मापता है। यह सूचकांक भारत के व्यापारिक साझेदार देशों के साथ मुद्रास्फीति और मुद्राओं के एक्सचेंज रेट में अंतर को समायोजित करता है।

  • जनवरी 2022 में रुपये का REER 105.32 था, जो अप्रैल 2023 में गिरकर 99.03 हो गया।
  • इसके बाद इसमें सुधार हुआ और नवंबर 2024 तक यह 108.14 तक पहुंच गया।

यह आंकड़े बताते हैं कि भारतीय रुपये का प्रभाव अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले लगातार बढ़ रहा है।

डॉलर में मजबूती बनाम रुपये में कमजोरी

यह समझना जरूरी है कि रुपये की मौजूदा स्थिति केवल इसकी कमजोरी को नहीं दर्शाती, बल्कि यह अमेरिकी डॉलर की अत्यधिक मजबूती का भी परिणाम है। डॉलर के मजबूत होने के पीछे कई कारक हैं, जिनमें से एक है अमेरिका की आर्थिक और राजनीतिक नीतियां।

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यूनिवर्सल टैरिफ हाइक की चेतावनी और चीन सहित अन्य देशों पर भारी कर लगाने की इच्छा ने डॉलर को और मजबूत किया है। इसी दौरान, अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले रुपये ने अपनी स्थिति मजबूत की है:

  • यूरो के मुकाबले रुपया 93.46 से घटकर 88.56 पर आया।
  • यूके पाउंड के मुकाबले यह 112.05 से 106.79 तक पहुंचा।
  • जापानी येन के मुकाबले रुपया 0.5823 से 0.5425 तक गया।

कैसे काम करता है REER?

REER, एक ऐसा इंडेक्स है जो भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं के औसत वेटेज पर आधारित है। इसे कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) की तरह मापा जाता है, जो एक निश्चित अवधि के सापेक्ष मुद्रास्फीति और मुद्रा विनिमय दरों को समायोजित करता है।

REER यह सुनिश्चित करता है कि रुपये की ताकत केवल एक मुद्रा (डॉलर) के मुकाबले नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर सही तरीके से आंकी जाए।

रुपये का बढ़ता प्रभाव: केवल डॉलर से तुलना क्यों गलत है?

भारत का व्यापार केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है। देश विभिन्न वैश्विक साझेदारों के साथ व्यापार करता है। इसलिए, रुपये की ताकत को डॉलर के संदर्भ में देखना पर्याप्त नहीं है। हमें यह समझना होगा कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपये का प्रदर्शन कैसा है।

उदाहरण के लिए, अक्टूबर और नवंबर 2024 में रुपये की मजबूती ने इसे 40 वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले बेहतर स्थिति में ला दिया। इसका मतलब है कि रुपये का प्रभाव वैश्विक व्यापार और निवेश में बढ़ा है।

डॉलर की मजबूती के पीछे की वजहें

डॉलर की मजबूती के पीछे कई राजनीतिक और आर्थिक कारण हैं। अमेरिकी प्रशासन द्वारा आयात पर भारी शुल्क लगाने की योजनाओं ने डॉलर को अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत किया है। इसके अलावा, वैश्विक बाजार में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती और फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीतियां डॉलर की स्थिति को और मजबूत कर रही हैं।

रुपये की कमजोरी या अवसर?

जब भी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है, लोग इसे नकारात्मक रूप में देखते हैं। लेकिन असल में, यह भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ा अवसर भी हो सकता है। कमजोर रुपया विदेशी बाजारों में भारतीय उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, जिससे निर्यात में वृद्धि होती है।

साथ ही, REER के आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि भारतीय रुपये का प्रभाव डॉलर के मुकाबले कमजोर होने के बावजूद, वैश्विक स्तर पर बढ़ा है।

निष्कर्ष: रुपये की असली ताकत को पहचानें

भारतीय रुपये को केवल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आंकी गई कमजोरी के संदर्भ में देखना सही नहीं है। REER और अन्य वैश्विक संकेतक दर्शाते हैं कि रुपया अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है। यह न केवल भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक व्यापार में भारत की प्रमुख भूमिका को भी रेखांकित करता है।

इसलिए, रुपये की असली ताकत को समझने के लिए हमें व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। कमजोर रुपया केवल एक पक्ष है, जबकि इसका दूसरा पहलू वैश्विक मुद्रा बाजार में भारत की बढ़ती साख को दर्शाता है।

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