Nepal-Tibet Earthquake: भूकंप के झटकों से 128 लोगों की मौत, जानिए पूरी खबर।

7 जनवरी 2025 को नेपाल-तिब्बत सीमा पर आए भूकंप ने पूरे एशिया को हिला कर रख दिया। इस आपदा ने न केवल तिब्बत के शिगात्से शहर को मलबे में बदल दिया, बल्कि इसके प्रभाव ने भारत, बांग्लादेश, भूटान और चीन तक को झकझोर दिया। 7.1 और 6.8 की तीव्रता वाले इन झटकों ने हिमालय क्षेत्र के भूकंपीय खतरे को एक बार फिर से उजागर कर दिया। आइए समझते हैं इस भूकंप के पीछे की वैज्ञानिक और भौगोलिक वजहें।

नेपाल-तिब्बत भूकंप: विनाश के आंकड़े और प्रभाव

नेपाल-तिब्बत सीमा पर स्थित टिंगरी काउंटी इस आपदा का केंद्र था। चीन के कब्जे वाले तिब्बत का शिगात्से शहर, जहां 8 लाख लोग रहते हैं, भूकंप के प्रचंड झटकों से बुरी तरह प्रभावित हुआ। यह शहर माउंट एवरेस्ट का एक प्रमुख प्रवेश बिंदु है, जिसे सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया गया। भूकंप के कारण सैकड़ों इमारतें ढह गईं और हजारों लोग बेघर हो गए।

इस आपदा के झटके हिमालय क्षेत्र से शुरू होकर भारत, बांग्लादेश और भूटान तक महसूस किए गए। यह घटना केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि एशियाई प्लेट और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के बीच के टकराव का परिणाम थी।

भूकंप के पीछे छिपा विज्ञान

भूकंप तब आता है जब धरती की टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या खिसकती हैं। नेपाल-तिब्बत क्षेत्र एशियाई और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट्स के संपर्क बिंदु पर स्थित है। इन प्लेटों के बीच की खिसकन से ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो भूकंप के रूप में बाहर निकलती है।

इन टेक्टोनिक प्लेट्स की खिसकन के कारण ही हिमालय का निर्माण हुआ है और इसकी ऊंचाई हर साल 4-5 मिलीमीटर तक बढ़ रही है। इस प्लेटों के बीच का संपर्क बिंदु ही भूकंप का केंद्र या हाइपोसेंटर कहलाता है। यहां से निकली ऊर्जा सतह पर पहुंचकर एपिसेंटर के माध्यम से विनाशकारी तरंगें उत्पन्न करती है।

हिमालय और भूकंप: एक प्राकृतिक संबंध

नेपाल और तिब्बत हिमालय के तलहटी में बसे हुए हैं, जो भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है। हिमालय का निर्माण करोड़ों साल पहले एशियाई और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट्स के टकराने से हुआ था। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधियों का केंद्र है, क्योंकि यहां प्लेटों के खिसकने की प्रक्रिया आज भी जारी है।

धरती के अंदर, लगभग 130-190 किलोमीटर की गहराई में, ये प्लेटें भारी दबाव के कारण आपस में टकराती हैं। जब यह दबाव अपनी चरम सीमा पर पहुंचता है, तो प्लेटों में दरारें या खिसकन होती है, जिससे सतह पर भूकंप के झटके महसूस होते हैं।

धरती की संरचना और भूकंप का संबंध

भूकंप की गहराई को समझने के लिए हमें धरती की संरचना को समझना होगा। धरती तीन प्रमुख परतों से बनी है:

  1. क्रस्ट (सतह की परत): यह सबसे बाहरी और पतली परत है। महासागरों के नीचे इसकी मोटाई केवल 5 किलोमीटर है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किलोमीटर मोटी है।
  2. मेंटल (मध्य परत): यह क्रस्ट के नीचे स्थित है और चट्टानों के विशाल दबाव को सहन करती है।
  3. कोर (अंदरूनी परत): यह धरती का सबसे भीतरी हिस्सा है।

टेक्टोनिक प्लेट्स क्रस्ट और मेंटल के बीच मौजूद हैं और ये एस्थेनोस्फीयर नामक परत पर तैरती हैं। जब इनमें हलचल होती है, तो भूकंप जैसी घटनाएं होती हैं।

नेपाल-तिब्बत क्षेत्र: भूकंप का गढ़ क्यों?

नेपाल और तिब्बत का क्षेत्र 12 टेक्टोनिक प्लेट्स में से एशियाई और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट्स के जंक्शन पर स्थित है। इन प्लेटों का टकराव और खिसकन यहां भूकंप का मुख्य कारण है। हिमालय के नीचे की प्लेटों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे यहां बार-बार भूकंप आते हैं।

यह क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील है और इसके नीचे प्लेटों का निरंतर खिसकना, भारी मात्रा में ऊर्जा का निर्माण करता है। यही ऊर्जा सतह पर भूकंप के रूप में बाहर निकलती है।

भविष्य के लिए सबक

नेपाल-तिब्बत भूकंप 2025 ने हमें यह सिखाया है कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने मानव तैयारियां कितनी कमजोर हो सकती हैं। भूकंप संभावित क्षेत्रों में मजबूत इमारतों का निर्माण, आपातकालीन योजनाओं की तैयारी और स्थानीय लोगों को भूकंप के प्रति जागरूक करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

भले ही नेपाल-तिब्बत क्षेत्र प्राकृतिक रूप से भूकंप के प्रति संवेदनशील है, लेकिन इसके प्रभाव को कम करने के लिए वैज्ञानिक शोध, भूगर्भीय सर्वेक्षण और संरचनात्मक इंजीनियरिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

नेपाल-तिब्बत भूकंप 2025 ने हिमालय क्षेत्र की भूगर्भीय संवेदनशीलता को उजागर किया। इस घटना ने न केवल लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित कीं, बल्कि एशिया को इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक सतर्क रहने का सबक भी दिया। नेपाल-तिब्बत भूकंप जैसे विनाशकारी झटके यह याद दिलाते हैं कि प्रकृति के सामने इंसान कितना असहाय हो सकता है। बेहतर आपदा प्रबंधन और जागरूकता से हम इन आपदाओं के प्रभाव को जरूर कम कर सकते हैं।

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